पश्चिमी राजस्थान में अकालो का तुलनात्मक अध्ययन एंव प्रबंधन
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Title |
पश्चिमी राजस्थान में अकालो का तुलनात्मक अध्ययन एंव प्रबंधन
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Creator |
सुरेन्द्र पूनियां
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Subject |
Drought
Arid Rajasthan Rainfall |
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Description |
Not Available
वर्ष 1901 के बाद उन्नत उपकरणों एवं डोक्युमेंटेषन से विभिन्न तीव्रताओं वाले अकालों को काजरी द्वारा रिकार्ड किया गया। इसके अनुसार वर्ष 1987 और 2002 अकाल के मामले में सबसे भयानक वर्ष माने गये जबकि 19 वें दशक का सबसे भयंकर अकाल वर्ष 1918 को माना गया है। वर्ष 1901 से 2012 के बीच पश्चिमी राजस्थान ने मध्यम एवं तीव्र क्षमताओं वाले 58 अकाल देखें हैं और इनमें से 5 ऐसे भी अवसर आये जब लगातार अकाल पड़े। वर्ष 1903-05, 1957-60, 1966-70, 1984-87 और 1997-2002 एवं 2009 राजस्थान के लिये दुर्दिन लेकर आने वाले थे। इसी तरह वर्ष 1918, 1987, 2002, और 2009 के अकाल बहुत ही विकराल थे जब वर्षा सामान्य से क्रमषः -81, -65, -70 और -40 प्रतिषत कम हुई। वर्ष 1998, 1999, 2000 और 2002 के अकाल के दौरान पश्चिमी राजस्थान में बाजरे के उत्पादन में (जो कि यहाँ की प्रमुख फसल है) क्रमषः 52, 74, 38 एवं 86 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी। इसके अलावा दलहनी फसलों के उत्पादन में 53 से 89 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी। इसी तरह पषुधन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव देखा गया है की वर्ष 1985, 1986 एवं 1987 लगातार तीन वर्षो तक अकाल के कारण पशुओं की सख्ंया में 26 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी। भारतीय मौसम विभाग के उच्चस्तर के पूर्वानुमान तंत्र, राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पुर्वानुमान केन्द्र एवं कृषि सहालकार सर्विसेज के टर्म फोरकास्ट, काजरी द्वारा विकसित अकाल तकनीक और अन्य अनुसंधान संस्थानों के पर्याप्त संसाधन और सूचना तकनीक पूर्व की अपेक्षा अब अकाल से निपटने में अधिक सक्षम है। Not Available |
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Date |
2022-06-07T09:41:01Z
2022-06-07T09:41:01Z 2022-04-20 |
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Type |
Article
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Identifier |
Not Available
Not Available http://krishi.icar.gov.in/jspui/handle/123456789/72488 |
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Language |
Hindi
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Relation |
Not Available;
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Publisher |
ICAR-Indian Institute of Maize Research, Ludhiana (Punjab), India
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