Organic production of lasoda in arid region
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Title |
Organic production of lasoda in arid region
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Creator |
Kamlesh Kumar and Chet Ram
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Subject |
Lasoda, arid region, production technology
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Description |
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शुष्क क्षेत्र बेकार भूमि की श्रेणी में आते हैं, जिनका उपयोग उनकी पूर्ण क्षमता के अनुरूप नहीं हो रहा है। शुष्क फसलों में, इस तरह की जलवायु में खेती के लिए लासोड़ा बहुत उपयुक्त फसल है। लासोड़ा एक ऐसी फसल है जिसे गर्म शुष्क क्षेत्रों में न्यूनतम कृषि लागत के साथ सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। आमतौर पर लसोड़ा को रेगिस्तान की चेरी कहा जाता है। इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कि गूंदा, लहसुआ, गूंदी, गोंद बेरी (श्लेष्मिक गूदा के कारण), असेरियन प्लम, भारतीय चेरी इत्यादि। यह एक अवप्रयोगी बहुउद्देशीय, हर्बल फलदार वृक्ष है जो शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी उत्पत्ति पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र से पूर्वी भारत तक होने का संदेह जताया जाता है। यह उष्णकटिबंधीय एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में ले जाया गया (प्रवेषित) पेड़ है और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में इटली, दक्षिण-पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और उष्णकटिबंधीय अमेरिका में वितरित है। भारत में, यह ज्यादातर उत्तरी भाग में पाया जाता है और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बहुतायत से वितरित एवं प्राकृतिक रूप से बढ़ रहा है। यह भारत और श्रीलंका में व्यापक रूप से वितरित है। यह राजस्थान के विभिन्न प्रकारों के जंगलों में, पश्चिमी घाट के नम पर्णपाती जंगल और म्यांमार के ज्वार के जंगलों में पाया जाता है । यह पूरे एशिया में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में, विशेषकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यह मध्यम आकार का, चौड़े पत्ते वाला पर्णपाती वृक्ष है। इसमें सूखे को सहन करने की काफी क्षमता है और इसलिए उत्तर भारत के शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में व्यापक रूप से पाया जाता है। यह मैदानी इलाकों में समुद्र तल से लगभग 200 मीटर ऊपर से शुरू होता है और पहाड़ियों में लगभग 1500 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है। है। पिछले दो दशकों से फलों, सब्जी एवं अचार उद्देश्यों के लिए भारत और दुनिया के अन्य शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में एक वाणिज्यिक फसल के रूप में इसकी खेती की जा रही है। मानव-वनस्पति जगत उद्देश्यों के लिए पौधों के विभिन्न हिस्सों का उपयोग बहुत पुराने समय से चला आ रहा है। अब उच्च उपज वाले वांछनीय जीनोटाइप का चयन करके, पारंपरिक के साथ-साथ जैव-प्रौद्योगिकीय साधनों के माध्यम से क्लोनल प्रसार विधि को विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। राजस्थान के पाली, सिरोही, उदयपुर, जोधपुर और जालोर जिलों में इसके वाणिज्यिक वृक्षारोपण किए गये हैं। लसोड़ा वृक्ष में फूल मार्च-अप्रैल के दौरान देखे जा सकते हैं। पुष्पन के तुरंत बाद फल बनते और मई-जुलाई के दौरान पकते हैं। गूदा मीठा, चिपचिपा और पारदर्शी होता है। Not Available |
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Date |
2021-01-21T04:13:46Z
2021-01-21T04:13:46Z 2020-03-01 |
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Type |
Article
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Identifier |
Not Available
Not Available http://krishi.icar.gov.in/jspui/handle/123456789/44915 |
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Language |
Hindi
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Relation |
Not Available;
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Publisher |
Not Available
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