KRISHI
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http://krishi.icar.gov.in/jspui/handle/123456789/35478
Title: | शुष्क क्षेत्र में फालसा की खेती |
Other Titles: | Not Available |
Authors: | कमलेश कुमार एवं श्रवण एम. हलधर |
ICAR Data Use Licennce: | http://krishi.icar.gov.in/PDF/ICAR_Data_Use_Licence.pdf |
Author's Affiliated institute: | ICAR::Central Institute for Arid Horticulture |
Published/ Complete Date: | 2019-01-01 |
Project Code: | Not Available |
Keywords: | शुष्क क्षेत्र, फालसा ,उत्पादन, उपयोगिता |
Publisher: | Not Available |
Citation: | Not Available |
Series/Report no.: | Not Available; |
Abstract/Description: | फालसा (ग्रेविआ सुबनीक़ुऐलिस एल.) भारत के सबसे पुराने स्वदेशी फलों में से एक है जिसका संभवत: वडोदरा, गुजरात से उद्भव हुआ माना जाता है। इसकी खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में व्यापक रूप से की जाती है। भारत में यह ज्यादातर शहरों के आसपास के क्षेत्रों में पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और भारत के हिमालयी क्षेत्रों में व्यावसायिक रूप से उगाया जाता है, तथा समुद्र तल से 3,000 फीट तक की ऊँचाई पर मिलता है, एवं छोटे स्तर पर यह महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी उगाया जाता है। यह कठोर प्रकृति का होने के कारण शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की फसल है। यह अल्प-प्रयोगी फल वाली फसलों के अंतर्गत आता है, लेकिन यह एक मूल्यवान फल है जिसमें उच्च पोषण और औषधीय गुण होते हैं। इसमें रस और सिरप बनाने की काफी संभावनाएं हैं, जो कि एक ताज़ा और ठंडा पेय के रूप में अत्यधिक प्रचलित हैं। चूंकि, यह अल्प-प्रयोगी फल वाली फसल है, इसलिए भारत के प्रत्येक राज्य में बहुत छोटे पैमाने पर खेती की जा रही है। हालाँकि, शहरों के पास इसकी खेती व्यावसायिक स्तर पर की जाती है। इसका सेवन मानव स्वास्थ्य पर कई प्रकार के सकारात्मक प्रभाव डालता है क्योंकि इसमें पोषण और औषधीय गुणों के महत्वपूर्ण विभिन्न घटक मौजूद पाये गये है। फालसा फल में कई प्रकार के पौध-रसायन और जैवसक्रिय प्राथमिक एवं द्वितीयक मेटाबोलाइट्स होते हैं जो इंसान के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में कारगर होते हैं। वैश्विक स्वास्थ्य और कल्याण में पिछले कुछ दशकों में फालसा फल ने मानव आहार में एक विशेष स्थान प्राप्त किया है, जो कि इसके अपार प्रतिउपचायक, कैंसर- रोधी और बुढ़ापा- रोधी प्रभावों के कारण है। फालसा फलों के सेवन से जुड़े स्वास्थ्य लाभ इसमें उपस्थित फिनोलिक यौगिकों, कार्बनिक अम्लों, टैनिन, एंथोसायनिन और फ्लेवोनोइड्स की उच्च मात्रा के कारण होते हैं। फल के अत्यधिक पोषण मूल्य के बावजूद, इसके व्यावसायिक पैमाने पर खेती और उत्पादन को उद्योग की तरफ से उचित प्रतिक्रिया नहीं मिली। परंपरागत रूप से इसकी खेती निर्वाह खेती के रूप में होती है और इसलिए इसका अधिकांशतः उपभोग ताजे फल के रूप में सेवन किया जाता है या जूस को फेरीवालों / विक्रेताओं द्वारा बेचा जाता है। |
Description: | Not Available |
ISSN: | Not Available |
Type(s) of content: | Extension Leaflet |
Sponsors: | Not Available |
Language: | Hindi |
Name of Journal: | Not Available |
Volume No.: | Not Available |
Page Number: | Not Available |
Name of the Division/Regional Station: | Crop Improvement |
Source, DOI or any other URL: | Not Available |
URI: | http://krishi.icar.gov.in/jspui/handle/123456789/35478 |
Appears in Collections: | HS-CIAH-Publication |
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